सुचेता कृपलानी भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण महिला स्वतंत्रता सेनानी थीं। उनका जन्म 25 सितंबर 1913 को हुआ था और उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ अपने साहसी योगदान के लिए पहचान बनाई।
सुचेता कृपलानी का संघर्ष आजादी के संग्राम में शुरू हुआ था, जब उन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) में शामिल होने का निर्णय लिया। उन्होंने महिला रेजिमेंट का संचालन किया और इसमें ब्रिटिश सेना के खिलाफ योगदान दिया।
सुचेता कृपलानी ने ‘रानी ज़ींदा’ के नाम से भी मशहूरी प्राप्त की, जो उनकी बहादुरी और समर्पण को दर्शाता है। उन्होंने 1943 में बर्मा (अब म्यांमार) के इम्फाल क्षेत्र में जापानी सेना के खिलाफ युद्ध किया। उनकी सेना ने बहादुरी से युद्ध भाषा की और इम्फाल के समीप के रेजिडेंशियल इलाकों को कब्ज़ा किया।
हालांकि, इम्फाल के समीप, कोहिमा की लड़ाई में उनकी सेना ने हार का सामना किया और इम्फाल को भी ब्रिटिश सेना ने वापस ले लिया। इसके बावजूद, सुचेता कृपलानी का संघर्ष आजादी के लिए उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के लिए पहचान बन गई।
स्वतंत्रता संग्राम के बाद, सुचेता कृपलानी ने सतत रूप से राष्ट्र सेवा में योगदान दिया और उन्होंने भारत सरकार से कई साम्मान और पुरस्कार प्राप्त किए। उन्होंने अपने जीवनभर देश सेवा में अपना समर्पण दिखाया और आज भी उन्हें स्वतंत्रता संग्राम की शूरवीर महिला के रूप में स्मरण किया जाता है।सुचेता कृपलानी एक ऐसी महिला स्वतंत्रता सेनानी थीं जिनका संघर्ष और समर्पण आजादी के लिए अद्वितीय है। उनका योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में न केवल महत्वपूर्ण था बल्कि उसने एक शक्तिशाली महिला नेतृत्व का उदाहारण प्रस्तुत किया।
सुचेता कृपलानी का साहस और उनकी आत्मसमर्पण भरी क़हानी है। उन्होंने जवानी में ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस के संग जुड़कर इंडियन नेशनल आर्मी (INA) में शामिल होने का निर्णय लिया और एक महिला रेजिमेंट का संचालन किया।
1943 में जब वे बर्मा के इम्फाल क्षेत्र में जापानी सेना के खिलाफ युद्ध कर रही थीं, वहां उनकी सेना ने बहादुरी से लड़ते हुए दुनिया को दिखाया कि महिलाएं भी स्वतंत्रता के लिए समर्पित हो सकती हैं।
सुचेता कृपलानी की बहादुरी और सेना में उनका मार्गदर्शन आज भी हमें प्रेरित करता है। स्वतंत्रता संग्राम के बाद, उन्होंने राष्ट्र सेवा में भी अपना समर्पण जारी रखा और समाज के लिए कई कार्यों में योगदान किया। उन्हें भारत सरकार द्वारा कई साम्मानों से सम्मानित किया गया है, और उनकी कहानी हमें यहां तक याद दिलाती है कि अगर कोई व्यक्ति अपने लक्ष्यों के लिए समर्पित है, तो उसे हर कठिनाई का सामना करने की क्षमता होती है।सुचेता कृपलानी ने अपने समर्पण और साहस के साथ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपना अमूल्य योगदान दिया। उनका प्रेरणादायक कार्य आज भी हमें स्वतंत्रता सेनानी के रूप में याद किया जाता है।
सुचेता कृपलानी ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में इंडियन नेशनल आर्मी (INA) में शामिल होकर एक महिला रेजिमेंट का संचालन किया। 1943 में वे बर्मा के इम्फाल क्षेत्र में जापानी सेना के खिलाफ युद्ध करती रहीं, जहां उनकी सेना ने बहादुरी से लड़ते हुए अपने साहस और समर्पण का प्रदर्शन किया।
उन्हें “रानी जींदा” के नाम से भी जाना जाता है, जो उनकी वीरता और समर्पण को दर्शाता है। इम्फाल के समीप की लड़ाई में उनकी सेना ने बहादुरी से युद्ध भाषा की और इम्फाल के रेजिडेंशियल इलाकों को कब्जा किया, लेकिन युद्ध की चुनौती को परास्त करना मुश्किल साबित हुआ।
सुचेता कृपलानी ने स्वतंत्रता संग्राम के बाद भी अपना समर्पण सार्वजनिक सेवा में दिखाया और उन्होंने देश के लिए अनेक समाजसेवी कार्यों में भी योगदान दिया। उन्हें भारत सरकार ने सम्मानित किया और उनकी बहादुरी को सलाम किया गया है। उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि अगर कोई व्यक्ति समर्पित है और सही मार्ग पर चलता है, तो वह किसी भी कठिनाई को पार कर सकता है।
सुचेता कृपलानी का समर्थन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक अद्वितीय और महत्वपूर्ण स्थान रखता है। उन्होंने अपनी बहादुरी और समर्पण के साथ इंडियन नेशनल आर्मी (INA) के महिला रेजिमेंट का संचालन किया और जापानी सेना के खिलाफ सैन्यक्रिया में भाग लिया।
1943 में इम्फाल के क्षेत्र में उनकी सेना ने बड़ी बहादुरी से युद्ध किया, जिससे उन्हें “रानी जींदा” के नाम से पुकारा जाता है। उन्होंने इम्फाल के समीप युद्ध किया और ब्रिटिश सेना के खिलाफ बहादुरी से मुकाबला किया।
सुचेता कृपलानी का समर्थन आज भी हमें उनकी वीरता और सेना में उनके नेतृत्व की महत्वपूर्ण भूमिका की याद दिलाता है। स्वतंत्रता संग्राम के बाद, उन्होंने सार्वजनिक सेवा में भी अपना योगदान दिया और समाज के लिए कई कार्यों में शामिल होकर देश को सेवा की।
उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि समर्पण और साहस से भरी एक निष्ठावान महिला किसी भी कठिनाई को पार कर सकती है और अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में सकारात्मक बदलाव ला सकती है।