
सौर मंडल (SOLAR SYSTEM) के बारे में जानकारी | |
ग्रह (Planets): | 8 (Mercury, Venus, Earth, Mars, Jupiter, Saturn, Uranus, Neptune) |
उम्र (Age) : | 4.6 अरब साल (Billion Years) |
बौने ग्रह (Dwarf Planets): | 9 (Ceres, Pluto, Eris, Haumea, Make make, Gong gong, Quaoar, Sedna, Orcus) |
चंद्रमा (Moons): | 758+ |
उल्कापिंड (Asteroids): | 12,98,410+ |
धूमकेतू (Comets): | 4,586 |
सौर मंडल की सीमा (Diameter): | 187. 5 खरब किलोमीटर |
Solar system के बारे में जानकारी |
जब भी हम आसमान में देखते हैं तो सोचते हैं की तो उसके रूप रंग और सितारों की चमक को देखकर दंग रह जाते हैं और परिंदों को इस खुले आसमान में उड़ान भरता देखकर हम भी उड़ने का अरमान रखने लगते हैं लेकिन शायद हम यह भूल जाते हैं कि हम तो इससे कहीं ऊपर उसे अनंत तक पहले रोमांस से भरे अंतरिक्ष तक अपनी पहुंच बन चुके हैं अंतरिक्ष जिसका कोई आरंभ और अंत दिखाई नहीं देता और पृथ्वी से देखने पर यह दूर तक पहले एक कैनवस नजर आता है जिस पर कहीं टिमटिमाते तारे बना दिए गए हैं तो कहीं चांद और सूरज को उगर दिया गया है यह अनंत तक पहला अंतरिक्ष भले ही शांत दिखाई देता हो लेकिन इसमें हर पल हलचल होती रहती है इसमें निर्माण भी होता है तो प्रलय का सारा सामान भी इसी अंतरिक्ष में समय है इस रहस्य और रोमांच से भरे अंतरिक्ष में बहुत सारी गैलक्सी मौजूद है और हर गैलेक्सी डस्ट गैस और अर्बन तारों से मिलकर बनी है लेकिन रात के अंधेरे में जो गैलेक्सी दूध जैसी सफेद और चमकदार नजर आती है वही मिल्की वे गैलेक्सी है इसे देखकर ऐसा लगता है मानो किसी ने अंतरिक्ष में दूध से रास्ता ही बना दिया हो तभी तो इसे मिल्की वे कहा जाता है |
इसे आप हमारी गैलेक्सी भी कह सकते हैं क्योंकि इसी गैलेक्सी में वह सारे तारे मौजूद है जिन्हें हम रात के आसमान में निहारत हैं इसी गैलेक्सी में हमारा सोलर सिस्टम है इसमें हमारा सूरज और हमारी पृथ्वी मौजूद है ऐसा नहीं है कि अंतरिक्ष में केवल एक ही सोलर सिस्टम है बल्कि इसके खजाने में हर साल एक नया सोलर सिस्टम मिल ही जाता है सिर्फ हमारी गैलेक्सी की बात करें तो इसमें भी करीब 100 बिलियन सोलर सिस्टम मौजूद हो सकते हैं मिल्की वे गैलेक्सी में मौजूद इन बिलियन सोलर सिस्टम में से एक सोलर सिस्टम हमारा है जिसके केंद्र में सूर्य है जो कि इस सिस्टम का सबसे बड़ा ऑब्जेक्ट है और इसके चारों ओर आर्ट प्लैनेट्स यानी कि आठ ग्रह चक्कर लगाते हैं|
सोलर सिस्टम की उत्पत्ति कैसे हुई ?
इस सोलर सिस्टम की उत्पत्ति करीब 4.5 गैस और धूल के बादल बने इसके निर्माण में सुपरनोवा की भूमिका रही जो किसी तारे में होने वाले भयंकर विस्फोट हुआ |
सूर्य का जन्म कैसे हुआ |
सोलर सिस्टम नेबुला का रूप ले लिया और जैसे ही ग्रेविटी की वजह से नेबुला हुआ तो यह एक डिस्क में कन्वर्ट हो गया पदार्थ की इस डिस की केंद्र में बहुत ज्यादा दबाव बढ़ने लगा इस दबाव की वजह से हाइड्रोजन एटम से मिलकर हीलियम का निर्माण करना शुरू कर दिया |ऐसा होने पर बहुत ज्यादा एनर्जी रिलीज हुई और इसी एनर्जी से सूर्य का जन्म हुआ |
जो कि सोलर सिस्टम के केंद्र में स्थापित हो गया उसे डिस्क के बाहरी हिस्से में भी मैटर लगातार एक दूसरे से टकराते रहे और उन्होंने आपस में मिलकर ड्वॉर्फ प्लैनेट्स एस्टेरॉयड मूंस कोमेट्स और मेटियोरॉइड बनाने शुरू कर दिए इस तरह पूरे सोलर सिस्टम का निर्माण होता गया जिसमें सूर्य के अलावा मर्करी ,वीनस ,अर्थ, मार्स ,जूपिटर, सैटर्न ,यूरेनस और नेपच्यून नामक आठ प्लेनेट बने और इन प्लैनेट्स के अलावा प्लूटो जैसे ड्वॉर्फ प्लैनेट्स दर्जनों चंद्रमा और मिलियंस एस्टेरॉयड कोमेट्स और राइट भी हमारे सोलर सिस्टम का हिस्सा बन गए सोलर सिस्टम की उत्पत्ति पर किए गए नए अध्ययन बताते हैं कि मिल्की वे गैलेक्सी और से गैलेक्सी के आपस में टकराने से तारों का निर्माण शुरू हुआ जिसमें बहुत सारी गैस जमा हुई और गैसों के बदले एक साथ आ गए जिससे सोलर सिस्टम बनने की प्रक्रिया शुरू हुई सूर्य और 8 प्लेनेट से बने इस सिस्टम को सोलर सिस्टम इसीलिए कहा जाता हैं |
सोलर सिस्टम नाम क्यों रखा गया
यह नाम सूर्य की वजह से मिला कि पूरे इस सोलर सिस्टम का केंद्र है| और सूर्य यानी सन को लैटिन में सेल्स कहा जाता है| इसलिए इसका नाम सोलर रखा गया और सन से रिलेटेड सभी चीजों को सोलर कहा जाता हैं |
सूर्य अपनी जगह पर स्थित रहता है |
सभी प्लैनेट्स इसके चक्कर लगाते हैं लेकिन असल में सूर्य को भी चक्कर लगाना पड़ता है सूर्य मिल्की वे गैलेक्सी के केंद्र के चारों तरफ चक्कर लगाता है और इस चक्कर को पूरा करने में सूर्य और सोलर सिस्टम के प्लेनेट को 250 मिलियन साल लग जाते हैं| सोलर सिस्टम में मौजूद 8 प्लैनेट्स हमेशा से एक पिक्स चौथीई में ही रहते हैं यानी मर्करी फिर वीनस फिर अर्थ और इस तरह 8 प्लेनेट का आर्डर फिक्स है| तो क्या इसका भी कोई कारण है हां प्लैनेट्स के इस प्रॉपर आर्डर का रीजन उनकी बनावट और सोलर सिस्टम की उत्पत्ति से जुड़ा है|
सूरज की गर्मी को सहन करने की क्षमता|
जी हां सूरज की गर्मी को सहन करने की क्षमता केवल रॉकी मटेरियल वाले प्लेनेट में ही हो सकती है| इसलिए सूरज के नजदीक कर प्लैनेट्स मर्करी ,वीनस ,अर्थ और मार्स स्थित है जो टेरेस्टेरियल प्लैनेट्स है इनके जाकर छोटे हैं और उनके सर पर सॉलिड और रॉकी है जबकि सोलर सिस्टम के आउटर रीजन में इस लिक्विड और गैस के प्लैनेट्स मौजूद है जिनमें गैस जॉइंट जुपिटर और सैटर्न है और की जॉइंट यूरेनस और नेपच्यून स्थित है इन चारों प्लैनेट्स में रिंग सिस्टम मौजूद है प्लैनेट्स को इनर और आउटर ग्रुप में बांटने का काम एस्टेरॉइड बेल्ट करती है जो मार्स और जुपिटर प्लैनेट्स के बीच में स्थित है| इन सभी प्लेनेट का साइज़ अलग-अलग है इन प्लैनेट्स का क्रम जाने तो सबसे बड़ा प्लेनेट जुपिटर है |फिर सैटर्न पर यूरेनस और नेपच्यून प्लेनेट जिनके बाद 5 नंबर पर अर्थ और उसके बाद वीनस और मरकरी प्लैनेट्स आते हैं| साइज के बेस पर प्लैनेट्स का यह बात जान लेने के बाद अब बारी है |
सूर्य :-

सूर्य के बारे में जानकारी |
हमारे सोलर सिस्टम के बारे में करीब से जानने की इसीलिए सबसे पहले सूर्य से शुरुआत करते हैं सोलर सिस्टम के केंद्र में सूर्य स्थित है जो कि अंतरिक्ष के बाकी तारों की तरह ही एक तारा है मिल्की वे गैलेक्सी में ऐसे 100 तारे मौजूद है लेकिन सूर्य उन सब में विशेष है क्योंकि अर्थ प्लेनेट पर जीवन को संभव बनाता है इसी के कारण अर्थ पर मौसम ऋतु में और जलवायु संभव होती है यह गैस का गोला सूर्य अर्थ से देखने पर पीला दिखाई देता है
लेकिन असल में यह सफेद रंग का है और अर्थ के एटमॉस्फेयर की वजह से पीला दिखाई देता है यह सूर्य कितना विशाल है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसमें 1 मिलियन अर्थ समा सकती है इसका डायमीटर अर्थ के डायमीटर से 109 गुना ज्यादा है और इसका प्रकाश भले ही 8 मिनट में अर्थ पर पहुंच जाता हो लेकिन इसकी औसत दूरी अर्थ से 150 मिलियन किलोमीटर है |जो कि हम इंसानों के लिए इतनी ज्यादा है कि अगर अर्थ का सबसे तेज दौड़ने वाला इंसान भी सूर्य से अर्थ की ओर आए तो उसे लगभग 450 साल लग जाएंगे पूरे सोलर सिस्टम के द्रव्यमान का 99.8 प्रतिशत और यही है जिसने अपनी ग्रेविटी लगभग 27 मिलियन डिग्री फारेनहाइट है यानी की 15 मिलियन डिग्री सेल्सियस क्या आप इसकी गर्मी का अंदाजा लगा सकते हैं बिल्कुल भी नहीं क्योंकि जब इसे इतना दूर अर्थ पर रहते हुए हम इसे आंख उठाकर देख नहीं पाए तो उसके कर टेंपरेचर का अंदाजा कैसे लगा पाएंगे सूर्य हमारा सबसे बड़ा एनर्जी सोर्स भले ही है लेकिन एक दिन इसकी एनर्जी भी खत्म हो जाएगी आज इसे येलो ड्वॉर्फ स्टार कहा जाता है लेकिन इसका सफल तो ब्लैक ड्वॉर्फ पर जाकर खत्म होगा अगले 5 बिलियन साल बाद जब सूर्य का न्यूक्लियर फ्यूल खत्म हो जाएगा तो यह येलो ड्वॉर्फ स्टार अपना रूप और आकर बदलकर चल रेड जॉइंट बन जाएगा और जब ऐसा होगा तो जीवन देने वाला सूर्य अर्थ सहित अपने नजदीकी प्लैनेट्स को जलाकर राख करीब और जब ऐसा होगा तो जीवन देने वाला सूर्य अर्थ सहित अपने नजदीकी प्लैनेट्स को जलाकर राख कर देगा इसके बाद सूर्य व्हाइट ड्वॉर्फ का रूप लेगा और धीरे-धीरे ब्लैक इस समय सूर्य का आकार पृथ्वी के बराबर हो जाएगा |
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