पानीपत की तीसरी युद्ध, भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है, जो 7 जनवरी 1761 को हुआ था। इस युद्ध का समय था मराठा साम्राज्य और दुर्रानी साम्राज्य के बीच, जिसमें मराठे की सेना का नेतृ सदाशिवराव भाऊ पेशवा और दुर्रानी साम्राज्य के शासक अहमद शाह दुर्रानी शामिल थे।
इस युद्ध का कारण था मराठा साम्राज्य की सामरिक और आर्थिक स्थिति कमजोर होना और उनका साम्राज्य पर दबाव आना। दुर्रानी साम्राज्य ने भी इस अवसर को अपने लाभ के लिए उठाया और भारत में अपना प्रभाव बढ़ाने का प्रयास किया।
युद्ध के दिनों में, पानीपत के क्षेत्र में सदाशिवराव भाऊ और अहमद शाह दुर्रानी के बीच बड़ा युद्ध लड़ा गया। इस युद्ध में दुर्रानी सेना ने मराठा सेना को हराया और क़ानपूर क्षेत्र को जीत लिया।
पानीपत की तीसरी युद्ध ने मराठा साम्राज्य को बड़ा प्रहार किया और इसके बाद उनकी ताकतें कमजोर हो गईं। दुर्रानी साम्राज्य ने इस युद्ध के बाद भारतीय राजनीति में अपना प्रभाव बढ़ाया और उन्होंने अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए भारत में अधिकार का दावा किया।
यह युद्ध दिखाता है कि युद्ध से पहले सामरिक और राजनीतिक योजना, शक्ति का सामरिक और सामरिक प्रबंधन, और सभी समृद्धि के लिए आवश्यक हैं। भारतीय इतिहास के इस महत्वपूर्ण चरण की जानकारी हमें हमारे राष्ट्र के सामरिक और राजनीतिक उधारणों को समझने में मदद करती