बिहार राज्य दर्शन

दोस्तों, इस पोस्ट में हम जानेंगे “बिहार में प्रथम” से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी। इसमें बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री, राज्यपाल, मुख्य न्यायाधीश, विश्वविद्यालय आदि से जुड़े सभी महत्वपूर्ण विषय शामिल हैं, जो बिहार में आयोजित होने वाली प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से अत्यंत उपयोगी हैं। पिछले कई परीक्षाओं में “बिहार में प्रथम” से संबंधित प्रश्न पूछे जा चुके हैं। तो आइए जानते हैं बिहार सामान्य ज्ञान के अंतर्गत “बिहार में प्रथम” से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न, जो इस प्रकार हैं:-

बिहार के राज्य चिह्न

  1. राज्य पशु: बैल
  2. राज्य पुष्प: गेंदा
  3. राज्य मछली: मंगुर
  4. राज्य वृक्ष: पीपल
  5. राज्य पक्षी: गौरैया

बिहार के प्रमुख मेले और उनकी विशेषताएं

पश्चिम भारत में स्थित बिहार राज्य भारत का तीसरा सबसे बड़ा राज्य है, जो अपनी अद्भुत कला और सांस्कृतिक धरोहरों के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। यहां विभिन्न त्योहारों और मेलों का आयोजन बड़े धूमधाम से किया जाता है, जो न केवल भारत में बल्कि विश्व के अन्य हिस्सों में भी लोकप्रिय हैं। यही कारण है कि प्रतियोगी परीक्षाओं में बिहार के इन मेलों से जुड़े प्रश्न अक्सर पूछे जाते हैं। इस लेख में, हम बिहार राज्य के प्रमुख मेलों के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे, जो जनरल नॉलेज और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं।

  1. छठ पूजा मेला
    छठ पूजा बिहार का सबसे प्रमुख त्योहार है, जो सूर्य देव और छठी मइया की आराधना के लिए मनाया जाता है। कार्तिक और चैत्र महीने में आयोजित इस पर्व में गंगा या अन्य नदियों के तट पर श्रद्धालु एकत्र होते हैं। यह पर्व न केवल धार्मिक महत्व रखता है बल्कि सामुदायिक सौहार्द का प्रतीक भी है।
  2. सोनपुर मेला
    विश्व प्रसिद्ध सोनपुर मेला, जिसे “हरिहर क्षेत्र मेला” भी कहा जाता है, एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला माना जाता है। यह मेला कार्तिक पूर्णिमा के समय आयोजित किया जाता है और इसकी परंपरा महाभारत काल से जुड़ी है। यहां हाथियों, घोड़ों और अन्य पशुओं का व्यापार होता है, जो इसे विशिष्ट बनाता है।
  3. श्रावणी मेला
    श्रावण महीने में आयोजित यह मेला देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम में होता है। यह मेला शिवभक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। कांवरिया श्रद्धालु गंगा नदी से जल लेकर बैद्यनाथ मंदिर तक लंबी यात्रा करते हैं।
  4. राजगीर महोत्सव
    बिहार के ऐतिहासिक शहर राजगीर में आयोजित यह महोत्सव कला, संस्कृति, और परंपराओं का अद्भुत संगम है। यहां लोकनृत्य, संगीत, और हस्तशिल्प की प्रदर्शनी लगाई जाती है, जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है।
  5. पतंग महोत्सव
    मकर संक्रांति के अवसर पर बिहार के विभिन्न हिस्सों में पतंगबाजी का आयोजन होता है। यह मेला युवाओं के बीच बेहद लोकप्रिय है और इसमें रंग-बिरंगी पतंगें आसमान को सजाती हैं।
  6. माधवपुर मेला
    माधवपुर मेला, जो बिहार के समस्तीपुर जिले में आयोजित होता है, अपने ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। यह मेला भगवान कृष्ण और रुक्मिणी के विवाह से जुड़ी कथाओं को दर्शाने के लिए मनाया जाता है। इस मेले में झांकियां, लोकनृत्य और धार्मिक आयोजन आकर्षण का केंद्र होते हैं।
  7. कार्तिक पूर्णिमा मेला (गया)
    गया में कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर आयोजित यह मेला पितृ पक्ष और विष्णु भगवान की पूजा के लिए प्रसिद्ध है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु फल्गु नदी में स्नान कर पिंडदान करते हैं। यह मेला धर्म और मोक्ष के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
  8. बक्सर का चौरासी कोस मेला
    बिहार के बक्सर जिले में आयोजित चौरासी कोस मेला पौराणिक कथाओं और धार्मिक महत्व से जुड़ा है। यह मेला भगवान राम और उनके जीवन की कथाओं पर आधारित होता है। श्रद्धालु चौरासी कोस की परिक्रमा करते हैं और धार्मिक आयोजनों में भाग लेते हैं।
  9. वैशाली महोत्सव
    वैशाली, जोकि बौद्ध धर्म और जैन धर्म की पवित्र स्थली है, यहां आयोजित वैशाली महोत्सव अपने सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व के लिए जाना जाता है। यह महोत्सव महावीर जयंती के अवसर पर आयोजित किया जाता है, जिसमें सांस्कृतिक प्रस्तुतियां और धार्मिक प्रवचन होते हैं।
  10. पितृपक्ष मेला (गया)
    पितृपक्ष मेला बिहार के गया में आयोजित होता है, जो पूर्वजों के तर्पण और पिंडदान के लिए प्रसिद्ध है। यह मेला अश्विन महीने में आयोजित होता है और इसमें लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं।

कुछ और मेले निम्नलिखित हैं

फारबिसगंज मेला
स्थान – फारबिसगंज अररिया
अवसर – काली पूजा
तिथि – अक्टूबर-नवंबर
अवधि – 15 दिन

गोपाष्टमी मेला
स्थान – खगड़िया अवसर गोपाष्टमी
तिथि – अक्टूबर-नवंबर
अवधि – 1 दिन

पदमपुर मेला
स्थान – सरायकेला
अवसर – लक्ष्मी काली पूजा
तिथि – अक्टूबर-नवंबर
अवधि – एक दिन

पुस्तक मेला
स्थान – गांधी मैदान पटना
तिथि – अक्टूबर\नवंबर \दिसंबर
अवधि – 15 दिन

गुरु पर्व
स्थान – पटना साहिब पटना सिटी
अवसर – गुरु नानक का जन्म दिन
अवधि – एक दिन

विवाह पंचमी मेला
स्थान – सीतामढ़ी
अवसर – राम और सीता का विवाह दिन
तिथि – नवंबर दिसंबर
अवधि – 7 दिन

किसान मेला या कृषि मेला
स्थान – पूसा (मुजफ्फरपुर)

गुलाब बाग मेला
स्थान – गुलाब बाग पूर्णिया
तिथि – दिसंबर
अवधि – 15 दिन

लौरिया नंदनगढ़ मेला
स्थान – बगहा (पश्चिम चंपारण)
तिथि – नवंबर दिसंबर
अवधि – 15 दिन

मलमास मेला
स्थान – राजगीर
अवसर – मलमास
तिथि – प्रत्येक मलमास
अवधि – एक महीना

मकर मेला
स्थान – राजगीर
अवसर – मकर संक्रांति या तिल सक्रांति
तिथि – 14 जनवरी
अवधि – 7 दिन

बांसी मेला
स्थान – बांका
अवसर- मकर सक्रांति
अवधि – 5 दिन

सिद्धेश्वर मेला
स्थान- सिद्धेश्वर (मधेपुरा)
अवसर – शिवरात्रि
तिथि – फरवरी-मार्च
अवधि – 7 दिन

बिंदेश्वर मेला
स्थान – झंझारपुर
अवसर –शिवरात्रि
तिथि- फरवरी-मार्च
अवधि –2 दिन

पशु मेला
स्थान- ब्रह्मपुर (बक्सर)
अवसर- शिवरात्रि
तिथि – फरवरी \मार्च
अवधि – 7 दिन

तुर्की मेला तुर्की
स्थान- मुजफ्फरपुर
अवसर – शिवरात्रि
तिथि – फरवरी-मार्च
अवधि – 6 दिन

महाशिवरात्रि मेला
स्थान – रक्सौल
अवसर – शिव पार्वती विवाह महोत्सव
तिथि – फरवरी-मार्च
अवधि – 1 दिन

हरदी मेला
स्थान – मुजफ्फरपुर
अवसर – शिवरात्रि
तिथि- फरवरी \ मार्च
अवधि – 15 दिन

रामनवमी मेला
स्थान – सीतामढ़ी
अवसर – राम जन्मोत्सव
तिथि – मार्च\अप्रैल
अवधि – 1 दिन

बिहार के इन मेलों का पर्यटन पर प्रभाव

बिहार के ये मेले राज्य के सांस्कृतिक और धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देते हैं। देश-विदेश से पर्यटक इन आयोजनों में शामिल होने आते हैं, जिससे न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को बल मिलता है बल्कि राज्य की पहचान भी बढ़ती है।

पर्यटकों के लिए आकर्षण:

  • हस्तशिल्प की प्रदर्शनी
  • पारंपरिक व्यंजन जैसे लिट्टी-चोखा और तिलकुट
  • लोकनृत्य और संगीत कार्यक्रम
  • ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण

प्रतियोगी परीक्षाओं में मेलों से जुड़े संभावित प्रश्न

सोनपुर मेला का आयोजन किस नदी के किनारे किया जाता है?
गंडक नदी के किनारे।

पितृपक्ष मेले का महत्व क्या है?
पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण और पिंडदान।

वैशाली महोत्सव किस धर्म से संबंधित है?
बौद्ध और जैन धर्म।

संस्कृति और पर्यटन को बढ़ावा देने की आवश्यकता

बिहार की कला और संस्कृति को प्रोत्साहित करने के लिए इन मेलों को व्यापक रूप से प्रचारित किया जाना चाहिए। स्थानीय कलाकारों और कारीगरों को मंच प्रदान करना और इन आयोजनों को डिजिटल माध्यमों से प्रसारित करना एक सकारात्मक कदम हो सकता है।

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